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लेखनी प्रतियोगिता -12-Apr-2023 ययाति और देवयानी

भाग 61 
हस्तिनापुर एक बार पुन: उत्सवों के मेलों की मस्ती में खो गया । हस्तिनापुर के लोग उत्सवधर्मी हैं । वे उत्सव मनाने का बहाना खोजते हैं । हस्तिनापुर का वातावरण ही कुछ ऐसा है कि मन मयूर सदैव नर्तन करने को तत्पर रहता है । ज्येष्ठ राजकुमार याति के सन्यासी बनने के पश्चात हस्तिनापुर शोक के सागर में समा गया था । किन्तु राजकुमार ययाति ने हस्तिनापुर को शोक के सागर से उसी तरह उबार लिया जिस तरह राक्षसराज हिरण्याक्ष द्वारा पृथ्वी को पाताल लोक में डुबोने के प्रयास को श्री नारायण ने वराह अवतार लेकर विफल कर दिया था और संपूर्ण जगत को शोक के गर्त में जाने से उबार लिया था । हस्तिनापुर को बहुत दिनों बाद एक बार पुन : उत्सव मनाने का अवसर प्राप्त हो गया था । आखिर राजकुमार ययाति "सर्वश्रेष्ठ योद्धा" घोषित हुए थे प्रदर्शन शाला में । यह क्या कम उपलब्धि थी ? इस महान उपलब्धि पर उत्सव मनाना तो बनता है ना ? तो हस्तिनापुर की जनता सड़कों पर झूमकर , नाच गाकर उत्सव मनाने लगी । 

ययाति के इस पराक्रम से हस्तिनापुर की युवराज की समस्या भी हल हो गई थी । याति के संसार , युद्ध और राजकार्य से वैराग्य ने भावी सम्राट के चयन पर प्रश्न चिह्न खड़े कर दिये थे । ऐसा लगता था कि कहीं बाकी राजकुमार भी राजकार्य से अन्मयस्क रहे तो इतने विशाल साम्राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा ? राजा का कर्तव्य प्रजा की भली भांति देखभाल करना तो है ही , साथ ही राज्य को एक सुयोग्य उत्तराधिकारी देना भी है । ययाति ने प्रदर्शन शाला में अपने प्रदर्शन से हस्तिनापुर को इस चिंता से मुक्त कर दिया था । 

पूरा हस्तिनापुर उत्सव के मद में चूर हो रहा था । चारों ओर आनंद की सरिता बह रही थी । वायु में आनंद रूपी मद का नशा था तो प्रकाश की आंखों में आनंद की चमक थी । ध्वनि में आनंद रूपी पायल की खनक थी तो आकाश में आनंद रूपी शब्दों की छनक थी । 

आनंद का कोई पैमाना नहीं होता है और न ही उसके कारणों की कोई सीमा होती है । किसी को छोटी सी बात पर ही आनंद आ जाता है लेकिन कोई "कारूं का खजाना" प्राप्त करने पर भी आनंद का अनुभव नहीं करता है । किसी को छप्पन भोगों में आनंद मिलता है तो कोई चार बूंद मदिरा से ही आनंद के सागर में झूमने लग जाता है । किसी को सौन्दर्य की बांहों में आनंद आता है तो कोई ईश्वर के चरणों में आनंद ढूंढ लेता है । आनंद मानव की प्रकृति पर निर्भर करता है । जैसा मनुष्य का स्वभाव, आनंद प्राप्ति के तरीके भी उसी प्रकृति से निर्धारित होते हैं । 

"परनिंदा" भी आनंद प्राप्ति का एक बहुत बड़ा स्रोत है और पर पीड़न भी । कुछ लोग पर पीड़न में इतना अधिक आनंद महसूस करते हैं तभी तो ऐसे लोग इतने अधिक अत्याचार करते जाते हैं असहाय, बेबस और मजबूर लोगों पर कि उन्हें देखकर और सुनकर हृदय कांप उठता है । ये सब पापकर्म पर पीड़न में आनंद ढूंढने के लिए ही तो किये जाते हैं अनाचारियों के द्वारा । मनुष्य की पर पीड़न में आनंद ढूंढने की वृत्ति से स्त्रियां सर्वाधिक प्रभावित हुई हैं । उन पर तरह तरह के अत्याचार किये हैं इन परपीड़कों ने   क्योंकि उन्हें स्त्रियों को पीड़ित करने में अत्यधिक आनंद का अनुभव होता है । 

कितने आश्चर्य की बात है कि जिस स्त्री ने पुरुष को पैदा किया, वही पुरुष उस स्त्री का शोषण करता है, उसे लज्जित करता है , उसे तिरस्कृत करता है और अपमानित करने का तो कोई अवसर ही नहीं छोड़ता है । स्त्री का सौन्दर्य पुरुषों के लिए सदैव आकर्षण का केन्द्र रहा है और उस पर अत्याचार का कारण भी । अत्यधिक सौन्दर्य भी कारण बन जाता है अनाचार का । सतयुग से लेकर कलयुग तक इसमें किंचिन्मात्र भी कहीं कोई कमी नजर नहीं आई है । देवी अहिल्या के सौन्दर्य ने देवराज इन्द्र को इतना विक्षिप्त बना दिया था कि वे चंद्र देव की सहायता से उनका शील भंग करने उनकी कुटिया पर जा पहुंचे । इसके लिए उन्होंने समस्त मर्यादाऐं भी ताक पर रख दीं । अपनी कामना की पूर्ति के लिए इन्द्र देव ने महर्षि गौतम का छद्म वेश भी बना लिया । जब देवताओं का भीशचारित्रिक पतन हो सकता है तो फिर मनुष्य की बिसात ही क्या है ?  

किंवदन्ती है कि देवगुरू ब्रहस्पति की पत्नी तारा और चंद्र देव दोनों एक दूसरे की सुन्दरता पर ऐसे मोहित हो गये कि उन्होंने समस्त सामाजिक मर्यादाऐं लांघ दीं । चंद्र देव ब्रहस्पति के शिष्य थे इस कारण तारा उनकी गुरू पत्नी थीं । किन्तु कामासक्ति के कारण गुरु शिष्य का संबंध भुला दिया गया और केवल स्त्री पुरुष का संबंध अस्तित्व में रह गया । जब कोई स्त्री या पुरुष कामान्ध हो जाता है तब वह रिश्तों की पवित्रता को भी भूल जाता है । तारा और चंद्र देव भी आसक्ति के दलदल में धंसकर एक दूजे में समा गये । इसका परिणाम भी बहुत भयंकर हुआ । ब्रहस्पति और चंद्र देव में भयंकर युद्ध आरंभ हो गया । शुक्राचार्य इस युद्ध से कैसे पृथक रहते ? उन्हें तो ब्रहस्पति का प्रत्येक स्तर पर विरोध करना था,  इसलिए उन्होंने इस युद्ध में चंद्र देव का साथ दिया । ब्रह्मा जी ने बड़ी मुश्किल से मध्यस्थता करके इस युद्ध को रुकवाया और तारा को उसके पुत्र "बुध" सहित ब्रहस्पति के पास भेज दिया । बताते हैं कि बुध चंद्र देव के पुत्र हैं । 

स्त्री के सौन्दर्य के लिए पुरुष आज भी विक्षिप्त है । आज भी ऐसी अनेक घटनाऐं सामने आती हैं जो दिल दहला देती हैं । नृशंसता की सारी हदें पार करने वाली इन घटनाओं में स्त्री को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र करके उसे गांव में घुमाया जाता है । उसके साथ सामूहिक दुष्कृत्य किया जाता है । उसके सौन्दर्य को "क्षत विक्षत" करने के लिए उसके स्तनों को बीड़ी सिगरेट से दागा जाता है । और तो और उसके गुप्तांगों में लोहे की रॉड जैसी वस्तुऐं घुसेड़ कर अपनी बर्बरता का प्रदर्शन किया जाता है । कहने को मनुष्य चाहे स्वयं को कितना ही आधुनिक कहे किन्तु उसके अंतर्मन में आज भी पैशाचिक, बर्बर, नृशंस वृत्ति भरी पड़ी है जो "मणिपुर" और "निर्भया" जैसी घटनाओं से बार बार परिलक्षित होती रहती हैं । 

क्या न्याय की कुर्सी पर बैठने वाले लोग जो "ईमानदार, पारदर्शी और संवेदनशील" होने का ढोंग करते हैं , इन अपराधियों के पक्ष में निर्णय सुनाकर वास्तव में न्याय कर रहे हैं ? असहाय, अबोध बालिकाऐं जो दुष्कर्म की शिकार हैं, वे पूछ रही हैं कि "हे स्वयं को धरती के भगवान कहलाने वालो, क्या आपके पास कोई जवाब है कि कोई अतीक , मुख्त्यार कैसे 100-100 हत्याऐं, बलात्कार करके भी खुलेआम घूमते रहते हैं ? उन्हें जमानत पर रिहा करके और अपराध करने को कौन प्रेरित कर रहा है "? 

कहीं पर तो एक घटना पर ही स्वत: संज्ञान ले लिया जाता है और कहीं पर लगातार नरसंहार होने पर भी कुम्भकर्णी नींद नहीं खुलती है । प्रश्न बहुत हैं पर न्याय व्यवस्था के वे ठेकेदार क्या उत्तर देंगे जो दुनियाभर को तो पारदर्शी होने का आदेश देते हैं और खुद पर्दे में रहकर कार्य करना चाहते हैं । न्याय का दिखावा (ढोंग)  बंद कीजिए तथाकथित धरती के भगवानो । जनता अब जाग रही है और आपके दोगलेपन को भी पहचानरही है । 

मन भी बड़ा चंचल है, एक पल में न जाने कहां से कहां चला जाता है । अभी अभी तो यह हस्तिनापुर में था और अभी यह न्याय व्यवस्था टटोलने शायद सुप्रीम कोर्ट चला गया था । बेचारे मन को क्या पता कि जो स्वयं घृणा से भरे हैं वे क्या न्याय करेंगे ? 

आज नहुष प्रात: बेला में गंगा मां के किनारे किनारे टहलते हुए चिंतन कर रहे थे । स्वर्ग लोक में परिस्थितियां पुन: युद्ध की बन रही थीं । राक्षसराज वृत्रासुर बहुत शक्तिशाली हो गया था । उसने देवताओं को परास्त कर स्वर्ग पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था । नहुष को ऐसा महसूस हो रहा था कि कहीं ऐसा ना हो कि इस बार भी ब्रह्मा जी का आदेश हो जाये कि देवताओं की मदद के लिए सम्राट नहुष को बुला लिया जाये ? यदि ऐसा हुआ तो हस्तिनापुर का राज्य कौन संभालेगा ? अभी तक तो हस्तिनापुर को कोई युवराज भी नहीं मिला है । ब्रह्मा जी का बुलावा आये उससे पूर्व ही हस्तिनापुर को उसका युवराज मिल जाना चाहिए । युवराज के चयन में कोई दुविधा भी नहीं है । याति के सन्यासी बनने के पश्चात ययाति ही एकमात्र हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनने की संपूर्ण योग्यता रखता है । गंगा की शांति और जल के बहाव ने महाराज नहुष को संदेश दिया "चरैवेति चरैवेति" । महाराज नहुष को प्रकृति की भाषा समझ में आ गई थी और उसी अनुसार उन्होंने भी ययाति को युवराज बनाने का निर्णय कर लिया था । 

राजप्रासाद में महाराज नहुष महारानी अशोक सुन्दरी के साथ परामर्श करने लगे । उन्होंने सयाति और अयाति को भी बुलवा लिया था । उनका मन भी टटोला जाना चाहिए ना ? महाराज नहुष ने कहा "ययाति अब 20 वर्ष के हो चुके और उन्होंने अपने पराक्रम का प्रदर्शन भी कर दिया है । अत: यदि सबकी सहमति हो तो ययाति को हस्तिनापुर का युवराज बना दिया जाये "? 

महाराज के इस प्रस्ताव पर सब लोग झूम उठे । महारानी अशोक सुन्दरी कहने लगी "आज तो आपने ऐसी सुन्दर बात कही है जिससे मन अत्यंत प्रसन्न हो गया है । यह इतना नेक कार्य है कि इसे शीघ्र पूर्ण कर लेना चाहिए" । महारानी अशोक सुन्दरी का चेहरा हर्ष से खिल उठा था । 
"तात् ! ज्येष्ठ से श्रेष्ठ और कोई नहीं है युवराज पद हेतु । अत: यह शुभ कार्य जितनी शीघ्रता से हो, कर लेना चाहिए" । सयाति कहने लगा "आखिर ज्येष्ठ के चरण दबाने का सौभाग्य मुझे ही तो प्राप्त होगा" । सयाति का मुख प्रसन्नता से चमक रहा था । 
"यदि मध्यम भैया युवराज के चरणों में स्वर्ग ढूंढेंगे तो मुझे भी मध्यम के चरण दबाने का सौभाग्य प्राप्त होगा । क्यों है ना मंझले भैया" ? 
अयाति की अपनी ही ढपली बज रही थी । महाराज नहुष अपने परिवार के सदस्यों में इतना प्रेम देखकर भाव विभोर हो गये थे । कहने लगे "मैं राजपुरोहित विरधाचार्य जी से मंत्रणा करके शीघ्र ही शुभ मुहूर्त निकलवाता हूं और एक सुन्दर सा कार्यक्रम आयोजित करता हूं" । 

महाराज नहुष राजपुरोहित विरधाचार्य से विचार विमर्श करने के लिए अन्य कक्ष में चले गये 

श्री हरि 
25.7.2023 


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4 Comments

RISHITA

02-Sep-2023 09:21 AM

Nice one

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madhura

01-Sep-2023 09:53 AM

Nice

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Anjali korde

29-Aug-2023 10:59 AM

Nice

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